देहरादून वालों का मोमो प्रेम .....

देहरादून वालों का मोमो प्रेम ,,,,,



    
    खुशगवार मौसम, बड़े-बड़े नामी स्कूल, रसभरी लीची, खुशबूदार बासमती चावल, देसी चाय और ताजा रस इन सब नामों से तो आपको पता चल ही गया होगा की हम देहरादून शहर की बात कर रहे हैं, लेकिन एक और चीज़ है जो यहाँ लोकप्रिय हो रही है और वो है 'मोमोज।


      मोमोज का नाम आते ही क्या आपके मुँह मे भी पानी जाता है? गरमा-गरम भाप में तैयार, एक महीन झिल्लिनुमा छोटी रोटी, उसके अंदर सब्जी या गोश्त की भरावन, साथ में तीखी अदरक लहसून और सूखी लाल मिर्च की चटाकेदार चटनी, कुछ प्याज के छल्ले और कभी कभी धुँआ उड़ाता सूप भी,,, वाह! सिर्फ इतना ही और कुछ नही। लो गया मुँह में पानी।

      वैसे तो आपको ये अच्छे से पता है कि मोमो देहरादून का क्षेत्रिय पकवान नहीं है, ये तो तिब्बत और नेपाल की देन है।फिर भी मोमो का प्रचलन यहाँ तिब्बत या नेपाल से कम भी नही है।

      थोड़ा बहुत जितना ज्ञान है उसमे यही है कि मोमो पूर्वी और दक्षिण एशियाई देशों की उत्पति माना जाता है। तिब्बत और नेपाल ही नही बल्कि भारत में भी ये कुछ राज्यों की पारंपरिक स्थानीय व्यंजन है। कुछ राज्यों में से भी ये उत्तराखंड की तो पारंपरिक भोजन नही है। फिर भी इसकी लोकप्रियता देहरादून में बहुत अधिक है। इसका श्रेय यहाँ के तिब्बती और नेपाली लोगो को जाता है जो यहाँ पर कई वर्षो से रहकर इसका स्वाद स्थानीय लोगो को भी दे रहे हैं।

     युवा तो 'Crazy about momos' हैं। मोमोज देहरादून के खाने का इतना पसंदीदा हिस्सा हो चुका है की ये एक महंगे Luxury Resturant में 'Dim Sum' (चीनी नाम),  Dumplings के नाम से तो किसी भी खाने की दुकान में या गली नुक्कड़ में Steam मोमो, Fried मोमो, Open मोमो, Tandoori मोमो और पता नही कि किस-किस नाम से बिक रहा है। बस इसकी भरावन अलग अलग हो सकती है। किसी में सब्जियों की, किसी में गोश्त की, किसी में पनीर या टोफू की वो भी अदरक लहसुन के साथ जुगलबंदी की जाती है।

        देहरादून में मोमो खाने के लिए आपको किसी होटल रेस्टोरेंट या स्नैक पॉइंट में ही क्यों जाना पड़े जब ये यहाँ तो दूध के डेरी के बाहर, चाय की ठेली के बगल में, सब्जी के दुकान के आगे, यहाँ तक की बेकरी की दुकान में भी आसानी से मिल जाता है।

     देहरादून में मोमोज् की लोकप्रियता का अंदाजा तो इसी से लगा लिया जाता है कि यहाँ के उत्तराखंडी के घर में पहाड़ी व्यंजन कम पकाए एवं खाए जाते हैं लेकिन अगर मोमो, बाहर मिले तो लोग इसे घर में बनाने से भी  नहीं कतराते है और इसकी पुष्टि तो कोरोना के लॉकडाउन वाले समय में भी हो गई क्योंकि जलेबी और केक के साथ साथ लोगो ने अपनी रसोई में मोमोज भी खूब बनाये।


        राजपुर रोड के 'सिंह,ऑर्चर्ड, कालसंग, के सी सूप बार' तो लाडपुर के 'तुलसी और जोशी मोमो' बहुत प्रसिद्ध हैं साथ ही साथ डोईवाला के 'सौम्या' और 'क्षेत्री' के मोमो का भी कोई जवाब नहीं हैं। एक और नाम है जो देहरादून में मोमोज को लेकर और भी दिवानगी बढा रहा है, वो है नेहरू कॉलोनी के 'अंगीठी मोमो' इनके स्वाद के प्रयोग का भी कोई सानी नहीं। वैसे इसके अलावा और भी कई नाम होंगे जिनका स्वाद आप लगातार ले रहे होंगे।

           खैर, प्रयोग करने वाले खाने में नए नए प्रयोग करते रहे और देहरादून वासियों का स्वाद बढ़ाते रहें। बस आशा यही करते हैं कि देहरादून के युवा, उतराखंडी खाने को भी थोड़ा अपने आहार में सम्मिलित कर लें। नहीं तो लगता है कि देहरादून वालों का मोमो प्रेम देख कर यहाँ का नाम  देहरादून से कहीं मोमोदून ना हो जाए।

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