उत्तराखंड के युवा की पहचान फौज, होटल या है किसान ।।
उत्तराखंड के युवा की पहचान
फौज, होटल या है किसान ।।
इन तीनों व्यवसाय को अगर देखें तो एक बात बड़ी ही तस्सली से हमे विश्वास दिलाती है, की उत्तराखंड के लोग बहुत मेहनती होते हैं और इस बात की सत्यता यहाँ का हर नागरिक भी करता है, चूंकि यहाँ हर घर से कोई व्यक्ति या तो सेना में देश की रक्षा हेतु काम कर रहा है या तो किसी होटल में अपने हुनर से सेवा दे रहा है या फिर वो एक मेहनती किसान है जो खेती बाड़ी से अपना और अपने परिवार का भरण पोषण कर रहा है।
हम ये भी नही कह सकते के उतराखंडी सिर्फ इन्ही तीन क्षेत्रों में ही सेवाये देते है। डॉक्टर, इंजीनियर, आर्किटेक्, कलाकार, आई टी, सरकारी सेवा, अध्यापक, भी बन कर उत्तराखण्ड को आगे बढा रहे हैं। फिर भी ये पंक्तियां पहाड़ के युवाओं के लिए तो सही बैठती हैं क्योंकि यहाँ के गांवों के युवाओं का एक बहुत बढ़ा दल फ़ौज और होटल की ही तरफ आकर्षित है।
जनसंख्या घनत्व की बात करें तो इसमें उत्तराखंड पिछले दस सालों से लगातार नंबर एक पर बना हुआ है जो देश को सैनिक दे रहा है। उत्तराखंड में जनसंख्या कम है लेकिन उसके हिसाब से सेना में भर्ती के लिय जवान आगे बढ़ते जा रहे हैं।
गढ़वाल में फ़ौज ब्रिटिश काल से ही लोगो को अपनी तरफ खिंचती है। यहाँ पर गोरों ने लैंसडाउन जैसे खूबसूरत पहाड़ पर भी अपनी बहुत बड़ी छावनी बनाई थी, जो आज भी है। बृटिशरस् को ये अच्छे तरिके से पता था की गढ़वाल् की भौगोलिक स्थिति बहुत विषम है, किंतु फिर भी यहाँ के लोग बड़े ही सामान्य तरिके से अपना जीवन जी रहे हैँ। जिसका मुख्य कारण यहाँ के लोगो का जीवनयापन के लिय कठिन मेहनत करना है, उन्हे ये ज्ञात हो गया था कि ये लोग शारीरिक रूप से काफि मजबूत हैँ और मेहनती भी।
कहा जाता है कि देहरादून का पलटन बाजार का नाम भी सेना से जुड़ा है क्योंकी यहाँ पर सेना के पलाटून का डेरा रहता था और ये पलाटून फिर आगे गढ़वाल् बढ़ती रहती थी। इसी कारण से सेना के वर्दी, हथियार, अनुशासन, उनका कदम ताल पहले से ही यहाँ के लोगो को प्रिय लगा है। दूसरा कारण रोजगार भी है चूंकि यहाँ कुछ विशेष रोजगार के साधन नही थे, तो लोगो को सेना में जाने पर एक रोजगार तो मिला ही साथ ही साथ सामजिक प्रतिष्ठा में भी पहचान मिली।
अब अगर फौज के बाद कोई दूसरा सबसे ज्यादा लोकप्रिय रोजगार है, तो वो है, होटल। गढ़वाल में पहले अगर कोई घर छोड़ के चला जाता था तो यही कहा जाता था कि ""भांडा मजांद होलू कखि होटुलु मा " (बर्तन मांजता होगा किसी होटल मे)। ऐसी धारणा का एक कारण शायद उन युवकों का अनपढ या कम पढ़ा लिखा होना भी हो सकता हैi जैसे हम लोग भी अमूमन अपने बच्चो को कह देते हैं कि अगर पढाई नही करोगे तो बड़े होकर बर्तन मांजोगे। इसीलिए शायद पुराने ग्रामीण भी यही सोचते होंगे। लेकिन इस बात में ये भी सत्यता है की उनको रोजगार देने में होटल सबसे आगे था।
ऐसा क्या था कि जो लोग घर से निकले या नौकरी की तलाश में देश गए वो लोग, अधिकतर होटल में काम करने लग गए.
इसका कारण था, इनकी मूलभूत जरूरत का पूरा होना- रोटी, कपड़ा और सिर के लिए एक छत, जो कि इन्हें होटल में काम करते हुए मिला। होटल में काम करते-करते यही लोग होटल के एक छोटे से कर्मचारी से वहाँ के एक जरूरी अंग बन गए। फिर क्या था इन्होंने अपने और भाई बंधुओ को भी अपने साथ लिया और प्रत्येक होटल में उत्तराखण्ड कि पहचान बना दी। अब इन्ही भाई लोगो ने धीरे धीरे अपनी उड़ान विदेश तक भी भरी, जो की एक अकल्पनीय बात थी और सिलसिला चल पड़ा, नई दुनिया में जाने का।
जहाँ इनके हुनर और मेहनत को और भी पहचान मिली। चूंकि विदेश जाकर पैसा कमाना एक बहुत बड़ी बात थी इसीलिए ये पंक्ति "भांडा मजांद होलू कखि होटुलु मा" अब सुनाई नही दी जाती I यहाँ अब योग्य पेशेवर को ही प्राथमिकता मिलती है। इसी कारण से यहाँ के युवा होटल मैनेजमेंट के प्रशिक्षण को प्राथमिकता देता है क्योंकि उसके मन में कहीं न कहीं विदेश जाने और अच्छा पैसा कमाने की तीव्र इच्छा है।
युवाओं को अब ये ज्ञात है की ये उद्योग आपके मेहनत और लगन देखता है और आपके आगे बढ़ने के राह खोलता है। इसमें उन्हे सिर्फ नौकरी ही नहीं मिलती है उन्हे एक अनुभव भी मिलता है एक नए माहौल का जहाँ आप कई लोगों से मिलते हैं, आप नई चीजें सीखते हैं, कुछ नया सोचते हैं और बनाते हैं। साथ ही साथ आप आत्मनिर्भर भी बनते हैं। इसलिय यहाँ का अधिकांश युवा अपनी मेहनत और कौशल का प्रयोग इसी क्षेत्र में करना चाहता है।
अब अगर किसान की बात करू तो यहाँ तो, युवा किसान बनते नहीं हैं, वो तो जन्म से किसान होता है क्योंकि उसने जन्म से अपने चारो तरफ हरियाली ही देखी होती है। अब वो किसान अपनी ईचछा से बनता है या किसी मजबूरी में और उसकी दशा क्या है? ये अपने आप में बहुत गंभीर विषय है I इसके लिए मैं बाद में आप से अपने विचार साझा करूँगी।।।।
Good
ReplyDeleteVery true
ReplyDeleteVery true I really like this article ,
ReplyDeleteMai Garv sai kahta hu ki mai Uttarakhandi hu
I like this article .
ReplyDeleteThis article isvery true
Iam also uttrikhandi 👫
Nice .👌👌
ReplyDeleteReally heart touching
ReplyDeleteTrue 👍
ReplyDeleteIndeed.... true picture of job culture among Uttarakhand youths.
ReplyDeleteVery crisp highlights of all the major things. Excellent article and excellent use of Gadwaali language reference.